बुलंद हुआ करतीं थीं कभी ये इमारतें ...आज भी कहानियां सुनातीं हैं इबारतें

Mar 28 2022

बुलंद हुआ करतीं थीं कभी ये इमारतें ...आज भी कहानियां सुनातीं हैं इबारतें
सौजन्य से: हसन जैदी

रंजीता सिन्हा, लखनऊ। आज भी अवध के नाम से अपनी पहचान रखने वाली उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तमाम इमारतें और इन इमारतों पर दर्ज इबारतें अपने जमाने की शानो-शौकत का बखान करतीं हैं। नये लखनऊ के रंगरूट नवाब भले खण्डहर में तब्दील होती मुगलकालीन इमारातों में छिप-छिप कर अपने तरीके का इश्क फरमाते हों, पर कभी ये इमारतें वाकई बुलंद हुआ करतीं थीं...शौकीन मिजाज नवाबों के मोहब्बत का आईना हुआ करतीं थीं। ऐसा अमिट आईना जिसमें आज भी उन शख्सियतों की कहानियां दर्ज हैं।

लखनऊ की ऐसी ही एक ऐतिहासिक बिल्डिंग पर हमारी नजर पड़ी जिसे आज हम बतौर भारतीय स्टेट बैंक की मुख्य शाखा जानते हैं। इसी भवन का इतिहास दर्शाती जब एक शिलापट् को हमने पढ़ा तो जाना कि हकीकत में यह इमारत 1832 में अवध के नवाब नासिर-उद-दीन हैदर शाह की पंसद पर बनी एक वेधशाला थी जिसे उस वक्त तारा वाली कोठी भी कहा जाता रहा है। हालांकि शाह नासिर-उद-दीन हैदर की शख्सियत के बखान में यहां दर्ज कुछ शब्दावलियों ने हमें चौंका भी दिया। यहां शाह नसीरूद्दीन हैदर को पहली लाइन में फिरंगी सोहबत, रंगीन मिजाज और एय्याश तक करार दिया गया है।

मन में सवाल उठा कि आखिर शालीन मिजाज वाले आला बैंक अधिकारी ऐसी शब्दावलियों को कैसे हजम कर गये जबकि उनका बैंक उसी ऐतिहासिक स्थल पर है जिसे शाह नसीरूद्दीन हैदर ने ही बनवाया था? इसके जवाब में बैंक के ही एक जिम्मेदार अधिकारी अपना नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताते हैं कि इस शिलापट्ट पर लिखी इबारत में हमारा कोई रोल नहीं होता। यह सबकुछ हमें पुरातत्व विभाग से ही मिलता है। उधर, उप्र. पुरातत्व विभाग के एक अधिकारी संतोष कुमार बतातेे हैं कि इतिहासकारों की लिखित पुस्तकों और ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर ही किसी भी शिलापट्टिका की इबारत लिखी जाती है। इसमें विभाग का अपना विवेक कोई नहीं होता। इतिहासकारों की पुस्तकों को अविश्वसनीय करार देना तर्कसंगत नहीं क्योंकि उनके वर्णन में साक्ष्य भी होते हैं।

बहरहाल जरा इससे जुड़ी की ऐतिहासिक और दिलचस्प जानकारियां और समझ लीजिए- नासिरुद्दीन हैदर 1827 से 1837 तक अवध के नवाब रहे। वे गाजीउद्दीन हैदर के बेटे थे। गद्दीनशीं होने के बाद नासिरुद्दीन अंग्रेजों के प्रति खासे आकर्षित तो थे। उनके कपड़ों, खान पान और अफसोस कि शराब पीने की आदत भी अंग्रेजी सोहबत की भेंट चढ़ गई।

इस स्वभाव के बावजूद नासिरुद्दीन काफी लोकप्रिय राजा थे और उन्होंने एक खगोलीय केंद्र, तारोंवाली कोठी भी बनवाई जिसमें आज स्टेट बैंक की मुख्य शाखा स्थापित है। एक जमाने में यहां कई नजाकत वाले उपकरण थे। इसका रखरखाव एक अंग्रेज खगोलविद करता था। उनकी मौत के बाद एक और उत्तराधिकार युद्ध हुआ, जिसमें अंग्रेजों ने जोर दिया कि सआदत अली का एक और पुत्र, मोहम्मद अली गद्दी पर बैठे। मोहम्मद अली एक न्यायप्रिय व लोकप्रिय शासक थे और उनके अधीन लखनऊ ने कुछ समय के लिए वापस पुरानी शानोशौकत हासिल की।

यह इमारत 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान फैजाबाद के मौलवी अहमदुल्ला शाह का मुख्यालय था, और विद्रोही परिषद अक्सर वहां अपनी मीटिंग्स करती थीं। बाद में इसपर इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया ने कब्जा कर लिया था, जिसे बैंक के रूप में उपयोग के लिए बहाल किया गया। अक्टूबर 1923 में यहां 15 दिनों के लिए बाढ़ आ गई थी। श्री डेविस तब रहने वाले बैंक प्रबंधक, कर्मचारियों और ग्राहकों को बचाने के लिए नावों का इस्तेमाल किया। कुछ साल बाद इसे नागरिक न्याय की स्थानीय अदालत के रूप में इस्तेमाल किया गया था।

बहरहाल साल दर साल गुजरने के बाद 1 जुलाई1955 में यहां एसबीआई की लखनऊ मुख्य शाखा का कायाकल्प हुआ। विरासत और संस्कृति को संरक्षित करते हुए भारतीय स्टेट बैंक, लखनऊ सर्किल ने ऐतिहासिक इमारतों में स्थित रामपुर और वाराणसी जैसी शाखाओं के कई परिसरों का भी नवीनीकरण करवाया है। हाल ही में ऐतिहासिक तारा वाली कोठी में स्थित एसबीआई की मुख्य शाखा को भी पुनर्निर्मित किया गया।

इतना ही नहीं इस बैंक में अदब अंजुमन नाम की एक लाइब्रेरी भी है जिसमें साहित्य और लखनऊ के साहित्यकारों के कार्य से जुड़ी गैलरी एवं तस्वीरें हैं। शाखा के भीतरी हिस्से में एक तरफ स्टेट बैंक लखनऊ से जुड़े प्रसिद्ध और विश्व प्रसिद्ध खिलाडिय़ों की तस्वीरें हैं। दायां हिस्सा लखनऊ के साहित्यकारों को समर्पित है। इस शाखा के प्रवेश द्वार को चमकीले रंगों से उकेरा गया है और नक्काशी से रूमी गेट की एक झलक पेश की गई है। जैसे ही कोई परिसर में प्रवेश करता है, वे एक विशाल ब्लॉक पर लिखी तारा वाली कोठी के हिस्ट्री को देख सकते हैं। इसके अलावा, लखनऊ की शान में दर्ज गए सर्वश्रेष्ठ उदाहरण भी देखे जा सकते हैं। कुलमिलाकर, यह शाखा नए और पुराने लखनऊ की विरासत के सर्वोत्तम तालमेल को दर्शाती है।